योग केवल व्यायाम मात्र नहीं, बल्कि स्वयं को जानने और प्रकृति को पहचानने की भी कला है। इन दोनों को यदि समझ लिया जाय तो संसार से नकारात्मक को निकाल सकारात्मकता का संचार किया जा सकता है। भारत योग की जन्मभूमि है। आज इसका डंका पूरे विश्व में बज रहा है। दुनिया के हर देश में योग की चर्चा है। बता दें कि भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है। भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है और इन्हीं में से एक योग भी है। आज योग सिर्फ भारत की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि अब इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी है। इसे योग की महिमा ही कहा जाएगा कि आज दुनिया भर के लोग इसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना रहे हैं। या यूं कहे स्वस्थ जीवन जीने की कला को योग कहते हैं। योग शब्द संस्कृत भाषा के युज (लनर) से लिया गया है जिसका अर्थ है एक साथ जुड़ना। यानी मन-मस्तिष्क एवं शरीर पर नियंत्रण रखने एवं खुशहाल जीवन के लिए योग काफी लोकप्रिय है। काया को स्वस्थ और निरोगी बनाए रखने के लिए योग से बेहतर कुछ नहीं। यही नहीं योग आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भी लेकर आता है। यही वजह है कि हाल के दिनों में अगर सबसे ज्यादा क्रेज किसी का देखा गया है तो वह योग है।
-सुरेश गांधी
आप शांति नहीं खरीद सकते, लकिन योग के व्यावहारिक पद्धति को अपनाकर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शांति का अनुभव एवं आत्म साक्षात्कार के अंतिम लक्ष्य को जरुर हासिल किया जा सकता है। मतलब साफ है योग मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक और सामाजिक उपलब्धियों को आध्यात्मिक उन्नति देता है। योग की मदद से कोरोना जैसी महामारी से भी जल्द से जल्द निजात पायी जा सकती है। कहा जा सकता है योग मानसिक के साथ-साथ शारीरिक रूप से भी लोगों को स्वस्थ बनाता है। या यूं कहे योग शरीर और दिमाग दोनों के लिए फायदेमंद है। योग न केवल व्यक्ति को लचीला और फिट रखता है, बल्कि तनाव मुक्त करने और सकारात्मक रहने में भी मदद करता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर विभिन्न रोगों को भी दूर करता है। खासकर आज के दौर में योग से स्वास्थ्य लाभ तो हो ही रहा है, यह प्रोफेशन या पेशे के तौर पर भी बेहतर विकल्प के रूप में सामने आ रहा है। देश में जहां हजारों योग प्रशिक्षक अपनी प्रतिभा से रोजगार पा रहे हैं वहीं विदेशों में भी प्रशिक्षण देकर वह लाखों की कमाई कर रहे हैं।
साल 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव के बाद कैबिनेट ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया। तब से लेकर अबतक हर साल 21 जून को योग दिवस मनाया जाता है। लोगों को योग को अपने दैनिक जीवन में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मंगलवार, 21 जून 2022 को मनाया जाएगा। ’योग’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों ’युज’ और ’युजीर’ से बना है जिसका अर्थ है ’एक साथ’ या ’एकजुट होना’। या यूं कहे आत्मा, मन और शरीर की एकता। योग करने से मानसिक तनाव से राहत, शारीरिक और मांसपेशियों की ताकत बढ़ाने, संतुलन बनाए रखने, सहनशक्ति में सुधार समेत अन्य कई तरह के लाभ मिलते हैं। योग दिवस के अवसर पर, दुनिया भर के लोग योग स्टूडियो, खेल के मैदान, स्टेडियम और पार्क जैसे विभिन्न स्थानों पर एक साथ योग का अभ्यास करने के लिए एकत्रित होते हैं। देखा जाएं तो योग की उत्पत्ति हजारों साल पहले की है जब लोगों के बीच धर्म की कोई अवधारणा नहीं थी। वेदों के अनुसार, भगवान शिव पहले योगी थे और उन्होंने योग के अपने ज्ञान को ’सात ऋषियों’ (सप्तऋषियों) को हस्तांतरित किया. यह भी माना जाता है कि सप्तर्षियों ने योग के ज्ञान का प्रसार करने के लिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की. 27 सितंबर 2014 को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की अवधारणा का प्रस्ताव रखा. 11 दिसंबर 2014 को, कैबिनेट ने आधिकारिक तौर पर 21 जून को ’अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में घोषित किया। इस बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम ’मानवता के लिए योग’ है. इस विषय को कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान योग द्वारा निभाई गई अहम भूमिका को दर्शाने के लिए चुना गया है।
कोविड-19 के दौरान, योग ने लोगों को न केवल अपने विवेक को बनाए रखने में मदद की, बल्कि उनकी पीड़ा, परेशानी को भी कम किया. योग के नियमित प्रैक्टिस से कोलेस्ट्रॉल और ग्लूकोज दोनों के लेवल में सुधार हो सकता है. कुछ आसन ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रखते हुए सर्कुलेटरी और नवर्स सिस्टम को ठीक करने में भी मदद करते हैं. योग मुद्राओं की मदद से इंसुलिन प्रोडक्शन को फिर से बेहतर करने में मदद मिलती है. शोध से पता चला है कि कुछ योग आसनों का नियमित अभ्यास पेट को कंप्रेस करने में मदद करता है, पैन्क्रीऐटिक या हार्मोनल सिक्रीशन को बेहतर करता है. जबकि सूर्य नमस्कार या सूर्य नमस्कार जैसे कठिन योग अभ्यासों से ब्लड प्रेशर के अलावा पूरी बॉडी को संतुलित किया जा सकता है। योग के आसन और प्राणायाम की विधि से मनुष्य अपने चेतन को निर्देशित कर सही भावनाओं का सृजन कर सकता है और अपने रोगरोधक क्षमता को मजबूत बना सकता है.
विश्व स्वास्थ्य केंद्र ने भी योग की महत्ता को बताते हुए कहा है कि स्वास्थ्य एक पूर्णता की स्थिति है, जो व्यक्ति के दैहिक, मानसिक एवं सामाजिक सेहत की संपूर्ण स्थिति पर निर्भर है, न कि किसी रोग के होने या नहीं होने पर. योग तो मन शरीर और आत्मा का संतुलन बनाये रखने की पद्धति का नाम है. जैसे-जैसे चिकित्सा विज्ञान में मानसिक और शारीरिक कारकों के समन्वय या उसके अभाव का स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव की जानकारी बढ़ रही है, वैसे वैसे रोग में मन के प्रभाव की महत्ता भी बढ़ रही है. चिकित्सा विज्ञान में बीमारी होने, या ठीक करने में मन की भूमिका को अब महत्वपूर्ण माना जा रहा है यानी मनो-दैहिक कारणों की प्राथमिकता बढ़ती जा रही है. कोरोना काल में इन्हीं कारकों के चलते बड़ी तबाही मची. तनाव, अवसाद, और दुशिं्चता जैसे मनोविकार लोगों के मन-मस्तिष्क पर हावी होते गये तथा उसके परिणामस्वरूप संक्रमण जानलेवा होता गया. मतलब साफ है मन और आत्मा का संतुलन ही स्वास्थ्य की स्थिति है और योग इसके समन्वय का मार्ग है.
योग आसनों में आमतौर पर शरीर की गतिविधियों को सिंक्रनाइज करते हुए गहरी सांस लेना शामिल होता है. यह मुख्य रूप से तनाव से राहत देकर ब्लड प्रेशर को स्वाभाविक रूप से नियंत्रित रखने में मदद कर सकता है. शिशुआसन (चाइल्ड पोज), पश्चिमोत्तानासन (फॉरवर्ड बेंड पोज), विरासन (हीरो पोज), बधाकोनासन (बटरफ्लाई पोज) और अर्ध मत्स्येन्द्रासन (सिटिंग हाफ स्पाइनल ट्विस्ट) जो हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों के लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित हो सकते हैं. आसनों के अलावा कपालभाति और अनुलोम विलोम जैसे सांस लेने के व्यायाम भी बेहद फायदेमंद होते हैं. अनुलोम विलोम एक वैकल्पिक ब्रीदिंग टेक्निक है जो आपके नर्वस सिस्टम को शांत करती है और बॉडी सिस्टम को मेंटेन करने में मदद करती है. यह तनाव को कम करने में भी मदद करता है, जो हाइपरग्लेसेमिया और हाई ब्लड प्रेशर का मुख्य कारणों में से एक है. कपालभाति इंसुलिन के उत्पादन में मदद करती है और ब्लड शुगर को कंट्रोल रखने में मदद करता है.
मानव मस्तिष्क के चार स्तर हैं, जिनमें से तीन- अचेतन, अर्धचेतन और चेतन- तो मनुष्य में मौजूद रहते हैं और चौथा- परा चेतन- विकसित किया जा सकता है. अचेतन व अर्धचेतन का चेतन पर गहरा प्रभाव पड़ता है और मानव सोच प्रभावित होती है. अधिकतर बीमारियों की जड़ में अचेतन और अर्धचेतन चेतन से उपजी दुश्चिंतता है. यह दुश्चिंतता मन के द्वारा नकारात्मक सोच और सोच के द्वारा आंतरिक प्रणाली को प्रभावित करती है और रक्त में नकारात्मक हार्मोंस का प्रवाह बढ़ाती है. यदि नकारात्मकता अधिक समय तक रहती है, तो फिर शरीर की आंतरिक प्रणाली रोग को जन्म देती है. यही नहीं, इस नकारात्मकता के प्रभाव के चलते शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता भी कमजोर पड़ती है और संक्रमण से लड़ने की शक्ति क्षीण होती है. योग अचेतन और अर्ध चेतन मन को नियंत्रित कर नकारात्मक भावनाओं की उपज को रोकने का माध्यम है तथा अपने चेतन मन को सही दिशा में ले जाने में मनुष्य की मदद करता है. योग के प्रभाव से नकारात्मक हार्मोंस का प्रवाह रुकता है और सकारात्मक हार्मोंस का प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य को सुदृढ़ और रोगमुक्त रखने में कारगर होता है.
इस दिन सबसे बड़ा दिन
अब योग ने पश्चिमी दुनिया में भी अपना रास्ता खोज लिया है। अब भारत से बाहर दूसरी संस्कृतियों ने भी योग को अपना लिया है। 21 जून वही तिथि है जब उत्तरी गोलार्ध में साल का सबसे लंबा दिन है, इसका दुनिया के कई हिस्सों में खास महत्व है। इस दिन ग्रीष्मकालीन संक्रांति का दिन होता है, इस दिन उत्तरी गोलार्ध में किसी ग्रह के अक्ष का झुकाव उस तारे की ओर सबसे अधिक झुका होता है जिसकी वह परिक्रमा करता है। भारत में यह पृथ्वी और सूर्य पर लागू होता है। इसके अलावा 21 जून को वर्ष का सबसे लंबा दिन माना जाता है जिसमें सूर्य जल्दी उगता है और सबसे देर में सूर्यास्त होता है। भारतीय पौराणिक कथाओं में भी इसे खास दिन माना जाता है। इससे एक ऐसी घटना जुड़ी मानी जाती है जिसे योगिक विज्ञान की शुरुआत माना जा सकता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार सात लोग आदि योगी के पास आत्मज्ञान के लिए गए। लेकिन वे अपने शरीर में उपस्थित नहीं थे, इसलिए वे चले गए। फिर ये लोग शिव के पास गए और आदि योगी से सीखने की जिद पर अड़े रहे लेकिन शिव ने यह कहकर मना कर दिया कि इसके लिए लंबी तैयारी चाहिए। वहां से निकलकर इन सात लोगों ने फिर 84 साल की साधना की। इस दौरान शिव का उन पर ध्यान गया, यह ग्रीष्मकालीन संक्रांति का दिन था। उसके 28 दिनों के बाद अगली पूर्णिमा पर आदि योगी ने खुद को आदि गुरु में बदल दिया और अपने शिष्यों को योग विज्ञान सिखाना शुरू कर दिया। योग दिवस के दिन लोग योग कर लंबे जीवन का संकल्प लेते हैं।
प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है
योग के आसन और प्राणायाम की विधि से मनुष्य अपने चेतन को निर्देशित कर सही भावनाओं का सृजन कर सकता है और अपने रोगरोधक क्षमता को मजबूत बना सकता है, जो अंततः स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है. मानव शरीर अपनी शारीरिक प्रणाली को स्वस्थ रखने में सक्षम है और रोग से स्वयं लड़ सकता है बिना हस्तक्षेप के. योग द्वारा इस शक्ति को बढ़ाया जा सकता है. लेकिन योग सिर्फ इतना ही नहीं है. योग परा चेतना की प्राप्ति का भी मार्ग है और इसी परा चेतना से मनुष्य आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति कर सकता है. योग का अंतिम उद्देश्य उसी परा चेतना की प्राप्ति है. शरीर संचालन योग का वो द्वार है, जो सभी के लिए सदैव खुला है। शरीर संचालन का तात्पर्य शरीर के विभिन्न अंगों, जोड़ों व रीढ़ को थोड़ा-बहुत हिलाने-डुलाने से है। इसकी तरक़ीब आसान है और यह बहुत अधिक नियमों से बंधा हुआ भी नहीं है। यही कारण है कि इसे बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक सभी कर सकते हैं। सामान्यतः इसे प्रातः काल करना चाहिए। लेकिन यदि लंबे समय तक काम करने से शरीर में खिंचाव व थकान महसूस कर रहे हैं तो तत्काल जोड़ संचालन भी कर सकते हैं। इसे करने के लिए मात्र 5-7 मिनट देना होंगे।