भोले की नगरी में भक्तों से मिले भगवान जगन्नाथ

जय जगन्नाथ से गूंजा काषी, भगवान के तीनों विग्रहों के दर्षन पाकरभावविभोर हुए श्रद्धालु, पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालुओं ने खींचा आस्था की डोर, हर हाथ प्रभु जगन्नाथ के दर्शन को उठा

-सुरेश गांधी

वाराणसी : पन्द्रह दिनों के एकांतवास के बाद शुक्रवार को जगत के पालनहार भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र ने भक्तों को दर्शन दिए। हजारों श्रद्धालुओं ने तुलसीदल की माला, सुगंधित बेला के पुष्पों की लड़ी, फल और श्रद्धाभाव अर्पित कर भगवान जगन्नाथ का रथ खींचा और प्रभु से आर्शीवाद से मांगा। रथ खींचने की होड़ मची रही। सबने सुख समृद्धि की कामना की। पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालुओं ने जगन्नाथ मेले का जमकर आनंद उठाया। इस दौरान बच्चों का उत्साह चरम पर था।

बीते दो साल कोरोना महामारी के कारण बनारस में रथयात्रा मेला नहीं लगा था। रथयात्रा स्थित बेनीराम बाग में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बलभद्र जी के विग्रहों को पीतांबर वस्त्र धारण कराने के बाद पीले फूलों से श्रृंगार किया गया। इसके बाद भगवान को 14 पहियों वाले सुसज्जित रथ पर आरुढ़ किया गया। जैसे ही पट खुला पीतांबर धारी प्रभु के दर्शन के लिए भक्तों का रेला उमड़ पड़ा। दर्शन-पूजन के लिए भोर से ही दर्शनार्थियों की कतार लग गई थी। इसके साथ ही बनारस में नए वर्ष की उत्सव श्रृंखला के पहले लक्खा मेला रथयात्रा का श्रीगणेश हो गया। सुबह से ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ जुटी रही। भक्तों की भीड़ को देखते हुए पुलिस और प्रशासन की ओर से सुरक्षा के तमाम बंदोबस्त किए गए हैं।

पुरी में मौसी के घर तो काशी में ससुराल के लिए निकलते हैं भगवान जगन्नाथ

इससे पहले वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मंदिर के गर्भगृह से बाहर आने के बाद गुरुवार को प्रभु का नेत्रदान हुआ। फिर भगवान शृंगार कक्ष से बाहर दर्शन मंडप में विराजे। शाम में पट खुला और और प्रभु अपने भक्तों के लिए सर्वसुलभ हो गए। शुभ मुहूर्त में मंगला आरती के बाद भक्तों ने विभोर मन से भगवान का अष्टकोणीय रथ दो डग खींचा और निहाल हो उठे। इसके साथ ही दर्शन के लिए कपाट खुले और ’भगवान जगन्नाथ की जय’, ’भइया बलभद्र की जय’ व ’सुभद्राजी की जय’ के उद्घोष से क्षेत्र गूंज उठा। भक्तों ने प्रभु का ’दरस’, रथ का ’परस’ और परिक्रमा की।

कहते हैं कि पुरी में मौसी के घर तो काशी में ससुराल के लिए निकलते हैं भगवान जगन्नाथ। मान्यता है कि काशी के इस दर्शन लाभ का पुण्य पुरी के भगवान दर्शन के समतुल्य है। भव्य रथ पर विराजमान भगवान जगन्नाथ सुभद्रा और बलभद्र के दर्शन कर लोग अपना जीवन धन्य मानते हैं। काशी का यह मेला भी पूरी के भगवान जगरनाथ के मेले जैसा ही होता है। देखा जाएं तो बाबा विश्वनाथ और जगन्नाथ दोनों ही एक दूसरे के समानार्थी व पर्यायवाची हैं। यही वजह है कि चाहे जगन्नाथ पुरी हो काशी की रथ यात्रा, भक्तों की रथ खींच कर पुण्य कमाने की परम्परा प्राचीन काल से अभी तक कायम है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Captcha loading...