भगवान जगन्नाथ : रथयात्रा खींचने मात्र से मिल जाती है जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति

भगवान जगन्नाथ श्रीहरि भगवान विष्णु के मुख्य अवतारों में से एक हैं। रथयात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों महत्व है। धार्मिक दृष्टि से देखा जाएं तो पुरी यात्रा भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। कहते हैं जो कोई भक्त सच्चे मन से और पूरी श्रद्धा के साथ इस यात्रा में शामिल होते हैं तो उन्हें मरणोपरान्त मोक्ष प्राप्त होता है। उन्हें इस जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती हैं। इस यात्रा में शामिल होने के लिए दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं. देश-विदेश के शैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकर्षण का केन्द्र होता है। रथ यात्रा में अलग-अलग तीन रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को पुरी की सड़कों से गुंडिचा मंदिर तक भक्तों द्वारा खींचा जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान के रथों को खींचने से जाने या अनजाने में किए मनुष्य के सभी पाप कट जाते हैं।

-सुरेश गांधी

भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन से कहा, ’हर इंसान को अपने हिस्से के दर्द को भुगतना पड़ता है, अगर तुम नहीं भुगतते तो तुम्हें अगले जन्म में ये दर्द सहना पड़ेगा और ये दर्द से सत्कर्मो से काटा जा सकता है। यही वजह है कि सत्कमों को करते हुए हर भक्त की इच्छा होती है वह एक बार भगवान जगन्नाथ की यात्रा में जरुर शामिल हो। जगन्नाथ यानी स्वयं उस व्यक्ति से है जो ब्रह्मांड का स्वामी है. लोग भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को लेकर तीन रथों का 3 किमी लंबा जुलूस निकालते हैं. रथयात्रा के दिन इन रथों को खींचने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु एक साथ कदम रखते हैं. यह प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा 1960 के दशक के अंत से भारत के विभिन्न शहरों में मनाई जाती है. न केवल हिंदू बल्कि बौद्ध भी रथयात्रा में भाग लेकर इस त्योहार को मनाते हैं. कहते है श्रीकृष्ण के मामा कंस उनके बड़े भाई बलराम को मारना चाहते थे. इस आशय से कंस ने कृष्ण और बलराम को मथुरा आमंत्रित किया था. उसने अक्रूर को अपने रथ के साथ गोकुल भेजा. पूछने पर, भगवान कृष्ण बलराम के साथ रथ पर बैठ गए और मथुरा के लिए रवाना हो गए. भक्त कृष्ण और बलराम के मथुरा जाने के इसी दिन को रथ यात्रा के रूप में मनाते हैं. जबकि द्वारका में भक्त उस दिन का जश्न मनाते हैं जब भगवान कृष्ण, बलराम के साथ, उनकी बहन सुभद्रा को रथ में शहर की शान और वैभव दिखाने के लिए ले गए थे.

रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ को दशावतारों के रुप पूजा जाता है। वे पुरी धाम में अवतार नहीं अपितु अवतारी के रुप में पूजित होते हैं। वे कलियुग के एकमात्र पूर्णदारुब्रह्म हैं जो 16 कलाओं से पूर्ण हैं। श्रीमंदिर के चार महाद्वारःपूर्व का प्रवेशद्वार सिंहद्वार कहलाता है जो धर्म का प्रतीक है। जहां से जगन्नाथभक्त श्रीमंदिर की 22 सीढियों को पारकर अर्थात् अपने 22 दोषों को दूरकर श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए जाते हैं। पश्चिम का द्वार व्याघ्रद्वार है जो वैराग्य का प्रतीक है। श्रीमंदिर के उत्तर दिशा के द्वार का नाम हस्ती द्वार है जो ऐश्वर्य का प्रतीक है और श्रीमंदिर के दक्षिण दिशा के द्वार का नाम अश्व द्वार है जो ज्ञान का प्रतीक स्वरुप है। भगवान जगन्नाथ शबर जनजातीय समुदाय से जुडे हैं और शबर समुदाय में यह प्रथा है कि उनके देवता काठ के होते हैं शबर समुदाय उनकी पूजा गोपनीय रुप में करते हैं। भगवान जगन्नाथ स्वयं कहते हैं कि जहां सभी लोग मेरे नाम से प्रेरित हो एकत्रित होते हैं, मैं वहां पर अवश्य विद्यमान होता हूं। रथयात्रा भक्त के शरीर तथा आत्मा का मेल है। रथयात्रा आत्मावलोकन की प्रेरणा देती है। स्कन्द पुराण, ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण तथा नारद पुराण आदि में भगवान जगन्नाथ तथा उनकी नगरी श्रीजगन्नाथपुरी का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यहां के श्रीमंदिर में चतुर्धा देवविग्रह रुप में विराजमान जगन्नाथजी वास्तव में सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार, व्यक्त-अव्यक्त और लौकिक-अलौकिक के समाहार स्वरुप हैं इसीलिए तो उनको पुरी धाम में वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर, गाणपत्य, बौद्ध और जैन रुप में पूजा जाता है। भगवान जगन्नाथ आनन्दमय चेतना के प्रतीक हैं जिनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा धर्म, भक्ति और दर्शन की त्रिवेणी है जिसमें भक्त उनके दर्शन के गोते लगाकर भक्ति, शांति, एकता, मैत्री, सद्भाव, प्रेम और करुणा का महाप्रसाद प्राप्त करता है।

जगन्नाथ मंदिर विष्णु के चार धामों में से एक है, यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ पुरी भारत के पूर्व में स्थित समुद्र के समीप विद्यमान हैं, यहां भगवान विष्णु साक्षात जगन्नाथ के रूप में निवास करते हैं। वे सर्वशक्तिमान हैं। समस्त प्राणियों के पितानाथ! मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही अंतरात्मा में भक्ति रस प्रवाहित होने लगता है, मन भावविभोर हो जाता है नेत्र खुशी से झलक जाते हैं। कहते है यहां 33 कोटी देवी देवता वहां निवासरत हैं। मंदिर के चारों दिशाओं में द्वार विशाल रूप से विद्यमान हैं। पूर्व दिशा में स्थित द्वार सिंह द्वार कहलाता है। सिंह द्वार से ही प्रत्येक वर्ष विशाल रथ यात्रा निकलती है। द्वार के दोनों और ऊपर में कृष्ण भगवान एवं बलराम जी की मूर्ति सुशोभित है इसके पास ही कोर्णाक से मंगवाया गया अरुण स्तंभ स्थापित किया गया है। ऊपर अरुण की मूर्ति स्थित है मंदिर के ऊपर स्थित ध्वजा नील छत्र कहलाता है। भगवान जी के प्रसाद की भी महिमा भी अत्यंत ही महान है महाप्रसाद में छुआछूत व भेदभाव नहीं किया जाता। श्री जगन्नाथ का मंदिर चारों दिशाओं में द्रव्यमान ज्योति की तरह है, जो रत्नागिरी में स्थित है। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का जिस समय श्रृंगार होता है, उस समय मंदिर के पट बंद रहते हैं। मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित श्री सीताराम बाबा मठ स्थित है यहां प्रभु बाबाजी के भक्ति में लीन अनेक श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। भगवान जगन्नाथ की यात्रा संपूर्ण भारतवर्ष में प्रसिद्ध है।

आषाढ़ शुक्ल पक्ष के समय यह यात्रा निकाली जाती है। रथ यात्रा निकालते समय मार्ग में स्थानीय राजा के द्वारा झाड़ू भी लगाई जाती है। लाखों श्रद्धालु अपने महाप्रभु के दर्शनार्थ उपस्थित रहते हैं और यात्रा में सहयोग प्रदान करते हैं। इस रथयात्रा को गुंडीचा यात्रा भी कहा जाता है। क्योंकि यह जगन्नाथ रथ यात्रा मंदिर से शुरू होकर गुंडीचा मंदिर तक होकर जाता है। संपूर्ण उड़ीसा को भगवान जगन्नाथ की भूमि कहा जाता है। यहां के निवासी भगवान जगन्नाथ जी को अपने परिवार का एक हिस्सा मानते हैं और कोई भी कार्य शुरू करने से पहले उनकी आराधना अवश्य करते हैं। क्षेत्र को पुरुषोत्तम क्षेत्र भी कहा जाता है। दक्षिण के द्वार को अश्व द्वार कहा जाता है, उत्तर दिशा के द्वार को हस्थी द्वार कहा जाता है। पश्चिम में स्थित द्वार को त्याग द्वार कहा जाता है। इस मंदिर को स्थापत्य कला का श्रेष्ठ धारण कहा जाता है। इसमें प्राचीन काल के मंदिर निर्माण के अवशेष दिखाई देते हैं। मंदिर के पास ही शिविर का स्थापना किया गया है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन समय में स्थित मंदिर के अवशेषों में ही कलिंग राजा अनंत चोल बर्मन ने 12वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

गोवर्धन पीठ
मान्यता है कि इस स्थान पर आदि शंकराचार्य जी ने गोवर्धन पीठ स्थापित किया था। प्राचीन काल से ही पुरी संतों और महात्माओं के कारण अपना धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व रखता है। अनेक संत-महात्माओं के मठ यहां देखे जा सकते है। जगन्नाथ पुरी के विषय में यह मान्यता है, कि त्रेता युग में रामेश्वर धाम पावनकारी अर्थात कल्याणकारी रहें, द्वापर युग में द्वारिका और कलियुग में जगन्नाथपुरी धाम ही कल्याणकारी है। श्रीकृष्ण साक्षात भगवान विष्णु के अवतार हैं। अपने भक्तों को सन्देश देते हुए उन्होंने स्वयं कहा है-जहां सभी लोग मेरे नाम से प्रेरित हो एकत्रित होते हैं, मैं वहां पर विद्यमान होता हूं। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। जगन्नाथ मंदिर 4,00,000 वर्ग फुट में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला, और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्य स्मारक स्थलों में से एक है। मुख्य मंदिर वक्र रेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।

मंदिर का गर्भगृह
मंदिर के भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्चस्व वाला है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिका रूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गये हैं। यह एक पर्वत को घेरे हुए अन्य छोटे पहाडियों, फिर छोटे टीलों के समूह रूपी बना है। मुख्य भवन एक 20 फुट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। मंदिर के शिखर पर स्थित चक्र और ध्वज। चक्र सुदर्शन चक्र का प्रतीक है और लाल ध्वज भगवान जगन्नाथ इस मंदिर के भीतर हैं, इस का प्रतीक है।

यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है
यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। वर्तमान रथयात्रा में जगन्नाथ को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, उनमें विष्णु, कृष्ण और वामन और बुद्ध हैं। जगन्नाथ मंदिर में पूजा, आचार-व्यवहार, रीति-नीति और व्यवस्थाओं को शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन धर्मावलम्बियों ने भी प्रभावित किया है। रथ का रूप श्रद्धा के रस से परिपूर्ण होता है। वह चलते समय शब्द करता है। उसमें धूप और अगरबत्ती की सुगंध होती है। इसे भक्तजनों का पवित्र स्पर्श प्राप्त होता है। रथ का निर्माण बुद्धि, चित्त और अहंकार से होता है, ऐसे रथ रूपी शरीर में आत्मा रूपी भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं। इस प्रकार रथयात्रा शरीर और आत्मा के मेल की ओर संकेत करता है और आत्मदृष्टि बनाए रखने की प्रेरणा देती है। रथयात्रा के समय रथ का संचालन आत्मा युक्त शरीर करता है जो जीवन यात्रा का प्रतीक है। यद्यपि शरीर में आत्मा होती है तो भी वह स्वयं संचालित नहीं होती, बल्कि उसे माया संचालित करती है। इसी प्रकार भगवान जगन्नाथ के विराजमान होने पर भी रथ स्वयं नहीं चलता बल्कि उसे खींचने के लिए लोक-शक्ति की आवश्यकता होती है। पौराणिक मान्यताओं में चारों धामों को एक युग का प्रतीक माना जाता है। इसी प्रकार कलियुग का पवित्र धाम जगन्नाथपुरी माना गया है।

यात्रा की महत्ता
जगन्नाथ जी की रथयात्रा में श्रीकृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी के स्थान पर बलराम और सुभद्रा होते हैं। इस सम्बंध में कथा इस प्रकार है – एक बार द्वारिका में श्रीकृष्ण रुक्मिणी आदि राजमहिषियों के साथ शयन करते हुए निद्रा में राधे-राधे बोल पड़े। महारानियों को आश्चर्य हुआ। सुबह जागने पर श्रीकृष्ण ने अपना मनोभाव प्रकट नहीं किया। रुक्मिणी ने रानियों से बात की कि वृंदावन में राधा नाम की गोपकुमारी है जिसको प्रभु हम सबकी इतनी सेवा, निष्ठा और भक्ति के बाद भी नहीं भूल पाये है। राधा की श्रीकृष्ण के साथ रासलीलाओं के विषय में माता रोहिणी को ज्ञान होगा। अतः उनसे सभी महारानियों ने अनुनय-विनय की, कि वह इस विषय में बतायें। पहले तो माता रोहिणी ने इंकार किया किंतु महारानियों के अति आग्रह पर उन्होंने कहा कि ठीक है, पहले सुभद्रा को पहरे पर बिठा दो, कोई भी अंदर न आ पाए, चाहे वह बलराम या श्रीकृष्ण ही क्यों न हों। माता रोहिणी ने जैसे ही कथा कहना शुरू किया, अचानक श्रीकृष्ण और बलराम महल की ओर आते हुए दिखाई दिए। सुभद्रा ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया, किंतु श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला की कथा श्रीकृष्ण और बलराम दोनो को ही सुनाई दी। उसको सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम अद्भुत प्रेमरस का अनुभव करने लगे, सुभद्रा भी भावविह्वल हो गयी। अचानक नारद के आने से वे पूर्ववत हो गए। नारद ने श्री भगवान से प्रार्थना की कि – हे प्रभु आपके जिस श्महाभावश् में लीन मूर्तिस्थ रूप के मैंने दर्शन किए हैं, वह सामान्यजन के हेतु पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहे। प्रभु ने तथास्तु कहा।

महाप्रसाद
मन्दिर की रसोई में एक विशेष कक्ष रखा जाता है, जहां पर महाप्रसाद तैयार किया जाता है। इस महाप्रसाद में अरहर की दाल, चावल, साग, दही व खीर जैसे व्यंजन होते हैं। इसका एक भाग प्रभु का समर्पित करने के लिए रखा जाता है तथा इसे कदली पत्रों पर रखकर भक्तगणों को बहुत कम दाम में बेच दिया जाता है। जगन्नाथ मन्दिर को प्रेम से संसार का सबसे बड़ा होटल कहा जाता है। मन्दिर की रसोई में प्रतिदिन बहत्तर क्विंटल चावल पकाने का स्थान है। इतने चावल एक लाख लोगों के लिए पर्याप्त हैं। चार सौ रसोइए इस कार्य के लिए रखे जाते हैं। पुरी के जगन्नाथ मंदिर की एक विशेषता यह है कि मंदिर के बाहर स्थित रसोई में 25000 भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं। भगवान को नित्य पकाए हुए भोजन का भोग लगाया जाता है। परंतु रथयात्रा के दिन एक लाख चौदह हजार लोग रसोई कार्यक्रम में तथा अन्य व्यवस्था में लगे होते हैं। जबकि 6000 पुजारी पूजाविधि में कार्यरत होते हैं। उड़ीसा में दस दिनों तक चलने वाले एक राष्ट्रीय उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग उत्साहपूर्वक उमड़ पड़ते हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि रसोई में ब्राह्मण एक ही थाली में अन्य जाति के लोगों के साथ भोजन करते हैं, यहां जात-पांत का कोई भेदभाव नहीं रखा जाता।

रसोई है प्रमुख आकर्षण
जगन्नाथ मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई है। यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है। यह मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। इस रसोई में भगवान जगन्नाथ के लिए भोग तैयार किया जाता है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है, उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है। मंदिर प्रांगण में ही विमला देवी शक्तिपीठ है। यह शक्तिपीठ बहुत प्राचीन मनि जाति का है। शक्ति स्वरुपिणि माँ विमला देवी भगवान श्री जगन्नाथ जी के लिए बनाए गए नैवेद्य को पहले चखती हैं फिर वह भोग के लिए चढ़ाया जाता है। ऐसे ही इस मंदिर का सबसे आकर्षक आश्चर्य है 56 भोग (पकवान)। जिसके बारे में कहा जाता है कि 56 अलग अलग तरह के भोग एक दुसरे के ऊपर रखके, जहां देवी सुभद्रा निवास करती हैं उस कमरे मे बंद कर दिया जाता है, तो खाना अपने आप पाक जाता है। इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि सबसे ऊपर का खाना सबसे पहले पकता है। कहा जाता है कि देवी सुभद्रा इसे पका देती हैं, जिसे प्रसाद के रूप में लोगों में बांटा जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Captcha loading...