आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि 13 जुलाई बुधवार को पड़ेगी। इसको गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। पूर्णिमा का प्रारंभ 13 जुलाई को प्रातः 4ः00 से और समापन रात 12ः00 बजे है। दुनिया के आरंभ से ही शैक्षणिक ज्ञान आधार एवं साधना करने और हर मनुष्य के उद्देश्य गुरु शिष्य परंपरा का जन्म हुआ। शिष्य को अंधकार से बचाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला ही गुरु कहलाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से ऊपर माना गया है। इस दिन अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त कर उनका सम्मान करना चाहिए। इस बार गुरु पूर्णिमा पर गुरु मंत्र प्राप्त करने के लिय प्रातः काल से लेकर दोपहर 12ः00 बजे शाम को 5ः00 से 7ः00 बजे शाम तक रहेगा। गुरु पूर्णिमा के दिन इस योग में जो गुरु मंत्र लेता है। उसको हमेशा सफलता प्राप्त होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार गुरु पूर्णिमा पर मंगल बुध गुरु और सूर्य अनुकूल स्थिति में विराजमान होने से सुयोग बन रहा है। इसमें रूचक योग भद्र योग हंस योग और सस नामक योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में गुरुओं की चरण वंदना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जीवन के सभी दुख दूर होते हैं। इस समय पर अपने गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
=सुरेश गांधी
आत्मा को सशक्त करो। हमारे पास कोई धरोहर है तो वह है विचारों की शक्ति। मस्तिष्क में तरह तरह की घटनाओं का आभास होता है। ऐसी शक्ति मन में पैदा होना चाहिये। कभी-कभी निराश होकर आदमी बेवश हो जाता है। यह तब होता है, जब मन अशांत होता है। दिल से टूटा व्यक्ति सब कुछ से निराश हो जाता है। मन को शुद्ध, स्वच्छ रखना जरूरी है। मन को निराश करना, घबराना सेहत के लिए अच्छा नहीं है। अपनी बुद्धि को शुद्ध रखो। अकेले में जहां तक संभव हो सके, भगवान का स्मरण करो। धीरज रखना काफी कठिन काम है। चिंतन मन शरीर को शुद्ध रखता है, लेकिन उप चेतन मन में परमात्मा की शक्ति है। जिंदगी विश्वास पर चलता है। सफलता जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। हम धरती पर आये हैं तो सब कुछ कर लेंगे, यह संभव नहीं है। जहां तक संभव हो सके मन में शांति लाने का प्रयास करना चाहिये। सत्संग से तन और मन की शुद्धि होती है व विवेक जागृत होता है। सत्संग व सेवा के माध्यम से मनुष्य ईश्वर को रिझाता है। हम अपने कर्तव्यों को पुर्ण करते हुए गुरुवचनों के अनुसार जीवन जीते हुए सहज तरीके से ईश्वर तक पहुंच सकते हैं। वैसे भी दुनिया में सबसे कीमती रिश्ता भगवान का है और भगवान का मंत्र ही गुरुमंत्र है। गुरुमंत्र को सिद्ध कर लेने पर वह कवच बन जाता है। गुरुमंत्र में अनलिमिटेड पावर है, बाकि सब लिमिटेड। सच्चे गुरु का आशीर्वचन मिलना भी सौभाग्य की बात है। इस बार की गुरु पूर्णिमा पर ग्रह नक्षत्रों के युति के हिसाब से बेहद खास योग बन रहा है. इस दिन मंगल, बुध, गुरु और शनि की स्थिति राजयोग बना रही है. गुरु पूर्णिमा के दिन रुचक, भद्र, हंस और शश नामक 4 राजयोग पड़ रहे हैं. इसके अलावा कई सालों बाद सूर्य-बुध की युति से इस दिन बुधादित्य योग भी बन रहा है. ऐसे में इस दिन आप कभी भी अपने गुरु के घर जाकर उनसे आशीर्वाद ले सकते हैं.
जिसने गुरु को जाना, वो परमात्मा को पाया
जिस किसी ने गुरु की महत्ता को समझा, परखा व अनुशरण किया है उसे जरुर ईश्वर का साक्षात दर्शन कर लिया होगा। वैसे भी भारत में गुरु-शिष्य की महान परंपरा रही है। ऋषि संदीपन और शिष्य भगवान कृष्ण, विश्वामित्र और श्री राम, द्रोणाचार्य और अर्जुन के बारे में सब जानते हैं, लेकिन ऋषि धौम्य के शिष्यों आरुणि, उद्दालक और उपमन्यु को जो स्थान अपने गुरु की सेवा से मिला, वह सनातन धर्म में सर्वोत्कृष्ट है। सूफी इस्लाम में भी जिन महान गुरु-शिष्यों की परंपरा भारत में प्रसिद्ध रही है वे हैं: मोइनुद्दीन चिश्ती और उनके शिष्य कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, काकी के शिष्य निजामुद्दीन औलिया, औलिया के शिष्य अमीर खुसरो। अमीर खुसरो की गुरु भक्ति के बारे में तो कहा जाता है कि वह अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया के निधन से इतने व्यथित हो गए थे कि उनके साथ ही यह कहते हुए चल बसे कि ‘गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस, चल खुसरो घर आपने, अब रैन भई चहुं देस।’ गुरु पूर्णिमा पर जिस किसी ने भी सच्चे मन से गुरु का दर्शन पूजन कर लिया उसे जरुर मिलेगी गुरु की कृपा। उसे मिल जायेगा धन-दौलत का आर्शीवाद। इस दिन माता-पिता की सेवा करने वालों से भी परमात्मा प्रसन्न होते हैं। हालांकि गुरु एवं माता पिता की सेवा गुरुपूर्णिमा ही नहीं हर रोज करनी चाहिए। लेकिन गुरु पूर्णिमा पर भक्तों की झोली भरते है गुरुजन। धर्म जीवन में तभी सुख दे सकता है, जब धर्म करने वाले में असहाय एवं निर्बल के प्रति दया कि भावना हो। सत्य का मार्ग दिखाने वाला ही सर्वश्रेष्ठ गुरु होता है। क्योंकि पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं होते है गुरु। यही वजह है कि गुरु के त्याग और तप को समर्पित है गुरु पूर्णिमा।
हर वक्त गुरु करते है रक्षा
शास्त्रों मे ऐसा कहा गया है कि अगर आपको ईश्वर श्राप दे देते हैं तो आपके गुरु ही आपकी रक्षा कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको आपके गुरु ने श्राप दे दिया तो भगवान भी आपकी रक्षा नही कर सकते हैं और न उस पाप से आपको बचा सकते हैं। गुरु की महिमा सिर्फ पौराणिक काल में ही नहीं थी, कबीर ने भी गुरु की महिमा का गान किया है। कबीर कहते हैं – गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।। शास्त्रों में ’गु“ का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और ’रु“ का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ’गुरु“ कहा जाता है। ’अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः।“ गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। गुरु आत्मा-परमात्मा के मध्य का संबंध होता है। गुरू से जुड़कर ही जीव अपनी जिज्ञासाओं को समाप्त करने में सक्षम होता है तथा उसका साक्षात्कार प्रभु से होता है। हम तो साध्य हैं किंतु गुरू वह शक्ति है जो हमारे भितर भक्ति के भाव को आलौकिक करके उसमे शक्ति के संचार का अर्थ अनुभव कराती है और ईश्वर से हमारा मिलन संभव हो पाता है।
हर संकट का निदान है गुरु
परमात्मा को देख पाना गुरू के द्वारा संभव हो पाता है। यहां गुरु की भूमिका सिर्फ शिक्षा तक ही सीमित नहीं है। गुरु व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी है। गुरु से जुड़कर ही जीव अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने में सक्षम होता है तथा उसका साक्षात्कार प्रभु से होता है। हम तो साध्य हैं किंतु गुरु वह शक्ति है जो हमारे भीतर भक्ति के भाव को आलौकिक करके उसमे शक्ति के संचार का अनुभव कराती है और ईश्वर से हमारा मिलन संभव हो पाता है। गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश में ले जाने का कार्य करता है, सरल शब्दों में गुरु को ज्ञान का पुंज कहा जा सकता है। आज भी इस तथ्य का महत्व कम नहीं है। विद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों द्वारा आज भी इस दिन गुरू को सम्मानित किया जाता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेलों का आयोजन किया जाता है। पहले विद्यार्थी आश्रम में निवास करके गुरू से शिक्षा ग्रहण करते थे तथा गुरू के समक्ष अपना समस्त बलिदान करने की भावना भी रखते थे, तभी तो एकलव्य जैसे शिष्य का उदाहरण गुरू के प्रति आदर भाव एवं अगाध श्रद्धा का प्रतीक बना जिसने गुरू को अपना अंगुठा देने में क्षण भर की भी देर नहीं की।
गुरु की महत्ता महाभारत दिखती है
महर्षि व्यास का यदि अवतार न होता और यदि उन्होंने महाभारत की रचना न की होती तो भारत विश्व गुरु नहीं कहलाता। महर्षि व्यास ने चारों वेदों पर भाष्य लिखा जिससे वेद विद्या लोकोपकारी हुई। महाभारत के संदर्भ में व्यास जी ने लिखा कि जो भारत में नहीं वह महाभारत में नहीं, जो महाभारत में नहीं वह भारत में नहीं। यह महाभारत के विषयों की विविधता को स्पष्ट करता है। वस्तुतः महाभारत का प्रादुर्भाव न होता तो भारत को कला संस्कृति ज्ञान के क्षेत्र में विश्व स्तर पर यह पहचान नहीं मिलती। मतलब साफ है हर इंसान के जीवन में गुरु का बहुत महत्व होता है. कहते हैं कि ’बिना गुरू के ज्ञान कहां’ यानी बिना गुरु के हम इस दूनिया में कुछ भी नहीं सीख सकते हैं. सभी धर्म के लोग अपने गुरु की पूजा करने के लिए साल में एक विशेष दिन निर्धारित किए हैं और उस दिन अपने गुरु की पूजा कर उन्हें दान-दक्षिणा देते हैं. गुरु मतलब गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश यानी जो हमें अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाता है उसे गुरु कहते हैं. गुरु हमें हर उस जानकारी से रुबरु करवाते हैं, जिनका हमें ज्ञान नहीं होता है. हमारा भारत देश पूरे विश्व में अपनी संस्कृति, आचरण व शिष्टाचार से जाना जाता है। यहां पर माता-पिता और गुरु को भगवान का रूप समझा जाता है। इसके लिए दो दोहा भी बेहद प्रचलित है- ‘गुरू को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण। शिष्य और गुरू जगत में, केवल दो ही वर्ण।।’ गुरुब्रर्ह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।। अर्थात गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है व गुरु ही साक्षात परब्रह्म है और उन्हीं सद्गुरु को हम प्रणाम करते हैं। गुरु को भगवान इसलिए माना जाता है क्योंकि गुरु ही हमें संसार रूपी भव सागर को पार करने में हमारी मदद करते हैं। गुरु से हमें ज्ञान प्राप्त होता है और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को आयोजित होता है। इस दिन वेदव्यासजी का जन्म हुआ था। इनको प्रथम गुरु की उपाधि प्रदान की गई है, क्योंकि ये मानव जाति के कल्याण के लिए वेदों का ज्ञान प्रदान किए थे।