मानसिक, शारीरिक और व्यक्तित्व विकास में योग की भूमिका अहम है। योग लचीलापन, शक्ति, संतुलन और सद्भाव की कुंजी है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का पथ प्रदर्शक है योग। मतलब साफ है आज की भागदौड़ और तनावपूर्ण जीवनशैली में योग काफी कारगर साबित हो रहा है। यह न सिर्फ किशोरावस्था, बल्कि हर उम्र के हर पड़ाव पर मददगार साबित हो रहा है। बच्चे हो या बुजुर्ग, महिलाएं हो या पुरुष सभी के मानसिक और शारीरिक विकास में योग की भूमिका काफी अहम होती जा रही है। इसमें मार्जरी आसन, तितली आसन, सूर्य नमस्कार, ताड़ासन, बालासन, सेतुबंधासन, वृक्षासन, पादहस्तासन, मत्स्यासन, चक्रासन, योग निद्रा, कपालभाति, मंडूकासन काफी अहम है
-सुरेश गांधी
योग भारतीय सभ्यता व संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। योग ने पूरी दुनिया को स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित किया है। इसे जनमानस तक पहुंचाने में हमारे कई ऋषि-मुनियों ने आम भूमिका निभाई है। योग को हम किसी एक दायरे तक सीमित नहीं रख सकते। योग वह विद्या है, जिसका हर क्षेत्र में और हर आयु वर्ग में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा दिया गया मानव को अमूल्य उपहार है। योग हर आयु वर्ग के लिए लाभदायक है। योग के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है, तो परिणाम भी सामने है। कोरोना जैसी महामारी से निपटने में योग ने अहम रोल निभाया है। देखा जाएं तो योग कई तरह की बीमारियों से निजात दिलाता है। योग को बच्चे, महिला, पुरुष सभी दिनचर्या में शामिल करें और निरोग रहे। योग हर किसी के लिए लाभदायक है। यही वजह है कि भारत के साथ आज पूरी दुनिया योग की ताकत को मानती है। योग एक प्रवृत्ति है जो वर्षों से फल-फूल रही है, इतना ही नहीं यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को बनाए रखने में एक पथ प्रदर्शक बन गया है। योग की प्रत्येक गतिविधि, लचीलेपन, शक्ति, संतुलन में सुधार और सद्भाव प्राप्त करने की कुंजी है। योग को अपनाने और प्रतिदिन योगाभ्यास करने और आनंद देने में मदद करने के लिए योग पोर्टल एक मंच बन गया है। योग संसाधनों, सामान्य योग (प्रोटोकॉल) प्रशिक्षण वीडियों और नवीनतम योग कार्यक्रमों में भाग लेने और उनकी खोज करने के लिए एक आदर्श प्रवेश द्वार है।
सदियों पहले भारत में योग की शुरुआत हो चुकी थी, जो कि एक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रैक्टिस है. योग दिवस का महत्व यही है कि लोगों में योगाभ्यास के प्रति जागरुकता फैलाई जा सके. क्योंकि, आजकल शारीरिक गतिविधि में कमी के कारण हमारा स्वास्थ्य काफी खराब हो गया है और योग, प्राणायाम और योगासनों का अभ्यास करके हम फिर से पूर्ण रूप से स्वस्थ बन सकते हैं. इस बार पूरी दुनिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2022 की थीम ’मानवता के लिए योग रखी गई है. इस योग दिवस की थीम ’योगा फॉर ह्यूमैनिटी’ भी कोविड-19 के प्रभाव को देखते हुए चुनी गई है. क्योंकि कोरोना महामारी ने ना सिर्फ हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि चिंता, अवसाद जैसी मनोवैज्ञानिक और मानसिक समस्याएं भी दी हैं. जो कि इस समय मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. वहीं, योग का मूल सार सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखना या फिर दिमाग व शरीर के बीच संतुलन बनाना नहीं है, बल्कि दुनिया में मानवीय रिश्तों के बीच संतुलन बनाना भी है. इसलिए ही मानवता के लिए योग का सहारा लिया जाना चाहिए. हर साल 21 जून को योग दिवस मनाने के पीछे दो कारण मुख्य कारण है, जिसमें से पहला कारण यह है कि साल के इस दिन सूर्य की किरणें सबसे ज्यादा देर तक धरती पर रहती हैं. जिसको प्रतीकात्मक रूप से मनुष्य के स्वास्थ्य और जीवन से जोड़ा जाता है. वहीं, दूसरा कारण यह भी माना जाता है कि 21 जून को ग्रीष्म संक्राति को सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और इसके बाद आने वाली पूर्णिमा को भगवान ने शिव ने अपने सात शिष्यों को पहली बार योग की दीक्षा दी थी. हालांकि, यह कारण पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है.
गुरुवार (21 जून) को पूरी दुनिया में इंटरनेशनल योग दिवस मनाया जाएगा। ये भारत के लिए बेहद गर्व की बात है कि जिस परंपरा को लोग भूल गए थे, उसे आज पूरी दुनिया में सराहा जा रहा है। भारत में योग को स्वस्थ रहने की लगभग 5 हजार साल पुरानी मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक पद्धति के रूप में मान्यता प्राप्त है और ये हमारे देश के लोगों की जीवनचर्या का हिस्सा है। योग की शक्ति की लोगों ने पहचाना और साल 2014 में 21 जून को योग के नाम कर दिया। ये पीएम नरेन्द्र मोदी की कोशिशों का नतीजा है। पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में 27 सितंबर, 2014 को दुनियाभर में योग दिवस मनाने का आह्वान किया था। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा भारत के लिए एक महान क्षण था क्योंकि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव आने के मात्र तीन माह के भीतर इसके आयोजन का ऐलान कर दिया। महासभा ने 11 दिसंबर, 2014 को ये ऐलान किया कि 21 जून का दिन दुनिया में योग दिवस के रूप में मनाया जाएगा। ये दुनियाभर के लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा आध्यात्मिक संतोष के विकास का अनुपम अवसर था। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन का दुनिया के लगभग सभी देशों ने समर्थन किया और दुनिया के 170 से ज्यादा देशों के लोग 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाते हैं और योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाने का संकल्प लेते हैं। पूरे विश्व में इस दिन योग के फायदों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये योग प्रशिक्षण शिविर, योग प्रतियोगिता और सामूहिक योगाभ्यास किया जाता है।
योग यम शब्द से ही बना है संयम यानी मर्यादित आचरण-व्यवहार, यम के पांच अंग हैं. अहिंसा- मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न पहुंचाना। सत्य – भ्रम से परे सच का ज्ञान। अस्तेय- नकल या चोरी का अभाव। ब्रह्मचर्य- चेतना को ब्रह्म तत्व से एकाकार रखना। अपरिग्रह- संग्रह या संचय का अभाव। योग नियम के भी पाँच अंग हैं. शौच- आंतरिक और बाहरी सफ़ाई। संतोष- जो है उसे ही पर्याप्त मानना। तप- स्वयं को तपाकर असत को जलाना। स्वाध्याय- आत्मा-परमात्मा को समझने के लिए अध्ययन। ईश्वर प्रणिधान- ईश्वर के प्रति समर्पण, अहं का त्याग। योग का वो अंग जो मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा मुखरता से प्रकट है, वो है आसन. आसन महज शारीरिक कसरत या लचीलापन नहीं है. महर्षि पतंजलि इसकी अवस्था को बताते हुए कहा था- स्थिरं सुखम् आसन. म्यानी शरीर की स्थिरता और मन के तल पर आनंद और सहजता ही आसन है. अगर आप इन दो स्थिति को नहीं पाते, तो आप आसन में नहीं हैं. शरीर में सूक्ष्म प्राण शक्ति को विस्तार देने की साधना है- प्राणायाम. योग याज्ञवल्क्य संहिता में प्राण (आती साँस) और अपान (जाती साँस) के प्रति सजगता के संयोग को प्राणायाम बताया है. साँस की डोर से हम तन-मन दोनों को साध सकते हैं. हठयोग ग्रंथ कहता है ’चले वाते, चलं चित्तं’यानी तेज़ साँस होने से हमारा चित्त-मन तेज़ होता है और साँस को लयबद्ध करने से चित्त में शांति आती है. साँस के प्रति सजगता से सिद्धार्थ गौतम ने बुद्धत्व को साधा.
वहीं, गुरु नानक ने एक-एक साँस की पहरेदारी को परमात्मा से जुड़ने की कुंजी बताया. हमारी 11 इंद्रियां हैं- यानी पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन. प्रत्याहार शब्द प्रति और आहार से बना है यानी इंद्रियां जिन विषयों को भोग रही हैं यानी उनका आहार कर रही हैं, वहां से उसे मूल स्रोत (स्व) की तरफ़ मोड़ना. ज्ञानीजन कहते हैं हर चीज़ जो सक्रिय है वो ऊर्जा की खपत करती है. इंद्रियों की निरंतर दौड़ हमें ऊर्जाहीन करती है. इंद्रियों की दौड़ को त्याग कर मगन रहना प्रत्याहार है. ’देश बन्धः चितस्य धारणा’ यानी चित्त का एक जगह टिक जाना धारणा है. इन दिनों अक्सर धारणा अभ्यास को हम ध्यान समझ लेते हैं. धारणा मन को एकाग्र करने की साधना है. इसके कई स्वरुप हैं जैसे प्राण-धारणा यानी साँस पर फ़ोकस, ज्योति या बिंदु त्राटक आदि. धारणा दरअसल ध्यान से पहले की स्थिति है. धारणा मन के विचारों की बाढ़ को नियंत्रित कर हमें शांति देती है. योगसूत्र कहता है कि जब धारणा लगातर बनी रह जाती है तो ध्यान घटित होता है. साफ़ है कि ध्यान हम कर नहीं सकते बल्कि यह घटित होता है. ध्यान के नाम पर जो भी विधि या प्रक्रिया हम अपनाते हैं वो महज हमें धारणा यानी एकाग्रता की ओर ले जा सकती है. ध्यान वो अवस्था है जहां कर्ता, विधि या प्रक्रिया सब कुछ समाप्त हो जाती है, बस एक शून्यता होती है. जैसे-नींद से पहले हम तैयारी करते हैं लेकिन यह तैयारी नींद की गारंटी नहीं है, वो अचानक आती है यानी घटित होती है. समाधि शब्द सम यानी समता से आया है. योग याज्ञवल्क्य संहिता में जीवात्मा और परमात्मा की समता की अवस्था को समाधि कहा गया है. महर्षि पतंजलि कहते हैं कि जब योगी स्वयं के वास्तविक स्वरुप (सत चित् आनंद स्वरुप) में लीन हो जाता है तब साधक की वह अवस्था समाधि कहलाती है। समाधि पूर्ण योगस्थ स्थिति का प्रकटीकरण है. कबीर इस अवस्था को व्यक्त करते हुए कहते हैं -जब-जब डोलूं तब तब परिक्रमा, जो-जो करुं सो-सो पूजा. बु्द्ध ने इसे ही निर्वाण और महावीर ने कैवल्य कहा.
कोरोनाकाल में और भी बढ़ा योग की महत्ता
कोविड-19 के कारण पूरी दुनिया मानो रुक सी गई है। अवसाद और तनाव जैसी विकृतियों ने आमजन की जिंदगी में मजबूती से पकड़ बना ली है। लोगों को तनाव मुक्त रखने के लिए योग ने एक अनोखा तरीका निजात किया है। मतलब साफ है यदि आप अपने मन और शरीर से थक गए हैं लेकिन अपने स्वास्थ्य से प्यार करते हैं तो योग का महत्व समझें। जीवन में योग का बहुत महत्व है। मानव मन आज जितना सशंकित वह भयभीत है, उतना कभी नहीं था। विश्व भर में मची उथल-पुथल और संघर्षों से विचलित मनुष्य सोच रहा है कि जिस दुष्चक्र में यह संसार आज फस गया उससे निकलने में योग कारगर साबित हुआ है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार नियमित योग करने से व्यक्ति की चेतना ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है, जो मन एवं शरीर मानव एवं प्रकृति के बीच संबंध स्थापित करता है। योग एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति है, जिसकी मदद से शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम किया जाता है। शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में भी यह सहायक है। योग के माध्यम से न सिर्फ बीमारियों का दूर किया जा सकता है, बल्कि शारीरिक एवं मानसिक तकलीफों का भी ईलाज किया जा सकता है। योग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाकर जीवन में नव-ऊर्जा का संचार करता है। यह विचारों पर संयम रखने का भी साधन है। साथ ही योग की आसन और मुद्राएं तन एवं मन दोनों को क्रियाशील बनाये रखती हैं। या यूं कहे फिजिकली और मेंटली कनेक्टिविटी है योग। योगाभ्यास से ठीक होता है मेटाबॉलिज्म। सांस का अभ्यास करने से शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचता है। प्रत्येक अंग स्वस्थ होता है। कोरोनाकाल में जो संक्रमित हुए उन्हें योग से काफी लाभ हुआ, 25-30 दिन के योगाभ्यास से स्वस्थ होने में मदद मिली। फेफड़ों से जुड़े मरीजों को योग से फायदा हुआ। क्योंकि इसके अभ्यास से फेफड़ों को मजबूती मिलती है। शरीर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की मात्रा पहुंचती है। यही वजह है कि अनिश्चितता के इस दौर में योग ने लोगों का विश्वास जीता। उन्हें न सिर्फ शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत बनाया, बल्कि इम्युनिटी पावर भी बढ़ाया।
एक शोध के मुताबिक योग में महिलाओं की भागीदारी का ट्रेंड सभी रिकॉर्ड को पीछे छोड़ने वाला है। चाहे पारंपरिक भारतीय योग क्लास हो या अमरीका में मौजूद शानदार मॉर्डन योग स्टूडियो। योगनियों (महिला योग प्रशिक्षक) का राज हर जगह है। योग कपड़े का बाज़ार हो या इन्स्टाग्राम पोस्ट, महिलाएं फ़ैन्सी योग पोज़ में पुरुष फ़िटनेस को चैलेंज देती नज़र आती हैं। दरअसल योग ने महिलाओं की दुनिया बदल दी है, इसलिए नहीं कि योग का ट्रेंड चल पड़ा है, बल्कि महिलाओं के अंदर हो रही सभी तरह की शारीरिक, मानसिक, हॉर्मोनल और मूड बदलाव में योग सबसे भरोसेमंद सहयोगी बनकर सामने आया है। महिलाओं की शारीरिक संरचना, उनके रोग और तकलीफ़ें पुरुषों से अलग होती हैं। यही वजह है कि महिलाएं बालकासन, अधोमुख श्वान आसन, सेतुबंधासन, सुप्त बद्धकोणासन, उपविस्ट कोणासन, विपरीत करणी, प्राणायाम के जरिए शरीर को स्वस्थ रखने में सफल होती है। जलनेति, जो नासिकाओं को साफ करती है। त्राटक- आंखों और ऑप्टिक नसों की रक्षा करने के लिए। इस दौरान कपाल भाति का अभ्यास सर्वोत्तम है।हस्तपादांगुष्ठासन, पवनमुक्तासन और यष्टिकासन महत्वपूर्ण अंगों में रक्त प्रवाह में सुधार करेंगे। जैसे-जैसे रक्त परिसंचरण बढ़ता है, संक्रमण से लड़ने वाली कोशिकाओं का प्रवाह तेज होगा, जो इस प्रकार आपकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को बढ़ावा देता है। योग में ध्यान सबसे महत्वपूर्ण अंग है और यह योग के उद्देश्य को परिपूर्ण करता है। यह शरीर, मस्तिष्क और आत्मा की औषधि है। ध्यान एक आत्मक्रिया है, जो स्वयं को बेहतर करने के लिए की जाती है। यह माना जाता है कि एक मुद्रा में बैठना ही ध्यान है, लेकिन आंतरिक स्थिरता का क्या? आसान शब्दों में कहें, तो ध्यान वह प्रक्रिया है, जो मस्तिष्क को ज्यादा शांत, केंद्रित और जागरूक बनाती है। ध्यान मस्तिष्क के लिए वही काम करता है, जो व्यायाम शरीर के लिए करता है।